8. प्रेस
संस्कृति और राष्ट्रवाद
(Press
Sanskriti aur Rastravad)
- आज
के वर्तमान युग में हम प्रेस के बिना आधुनिक विश्व की कल्पना नहीं कर सकते
हैं।
- चाहे
ज्ञान का क्षेत्र हो या सूचना का, मनोरंजन
का हो या रोजगार का,
इससे
प्रत्यक्ष रूप से दुनिया संचालित हो रहा है।
- छापाखाना
का आविष्कार का महत्व इस भौतिक संसार में आग, पहिया
और लिपि की तरह है जिसने अपनी उपस्थिति से पूरे विश्व की जीवन शैली को एक नया
आयाम प्रदान किया।
ब्लॉक
प्रिंटिंग- स्याही
से लगे काठ के ब्लॉक या तख्ती पर काजग को रखकर छपाई करने की विधि को ब्लॉक
प्रिंटिंग कहते हैं।
SM Study Point Press Sanskriti aur Rastravad
मुद्रण
का इतिहास गुटेनवर्ग तक :
- मानव
सभ्यता के आदिकाल में मनुष्य जो देखता था उसे अपनी स्वाभाविक बुद्धि तथा
अनुभव के अनुसार विभिन्न प्रकार से अंकित करने का प्रयास करता था।
- बाद
में अपने ज्ञान को विभिन्न पत्रकों पर करने लगा। 105
ई० में टस्-प्लाई-लून
( चीनी नागरिक ) ने
कपास एवं मलमल की पट्टियों से कागज बनाया।
- मुद्रण
की सबसे पहली तकनीक चीन, जापान
और कोरिया में विकसित हुई। 712 ई० तक
यह चीन के सीमित क्षेत्रों में फैल गया।
- 760
ई० तक
इसकी लोकप्रियता चीन और जापान में काफी बढ़ गई।
- ब्लॉक
प्रिंटिक का उपयोग अब पुस्तकों के पृष्ठ बनाने में होने लगा।
- मुद्रण
कला के आविष्कार और विकास का श्रेय चीन को
जाता है।
- 1041 ई० में
एक चीनी व्यक्ति पि-शेंग ने
मिट्टी के मुद्रा बनाए।
- 16
वीं
सदी तक परीक्षा देने वालों की तादात बढ़ने से छपी किताबों की मात्रा में भी
उसी अनुपात में वृद्धि हुई।
- 19
वीं
सदी तक आते-आते मांग को पूरा करने हेतु शंघाई प्रिंट-संस्कृति का नया केन्द्र
बन गया और हाथ की छपाई की जगह यांत्रिक छपाई ने ले ली।
योहानेस
गुटेनबर्ग – टाइप
के माध्यम से मुद्रण विद्या का आविष्कारक। वे जर्मनी के मेंज के रहने वाले थे।।
इन्होनें सन 1439 में
प्रिंटिंग प्रेस की रचना की जिसे एक महान आविष्कार माना जाता है। इनके द्वारा छापी
गयी बाइबल गुटेनबर्ग बाइबिल के नाम से प्रसिद्ध है।
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गुटेनवर्ग
और प्रिंटिग प्रेस :
- जर्मनी
के मेंजनगर में गुटेनवर्ग के कृषक-जमींदार-व्यापारी में जन्म लिया था। वह
बचपन से ही तेल और जैतून पेरनेवाली मशीनों से परिचित था। गुटेनवर्ग ने अपने
ज्ञान एवं अनुभव से टुकड़ों में विखरी मुद्रण कला के ऐतिहासिक शोध को संगठित
एवं एकत्रित किया तथा टाइपों के लिए पंच, मेट्रिक्स, मोल्ड
आदि बनाने पर योजनाबद्ध तरीके से कार्यारंभ किया।
- मुद्रा
बनाने हेतु उसने सीसा,
टिन
और विसमथ धातुओं से उचित मिश्र-धातु बनाने का तरीका ढूंढ निकाला।
- एक
सुस्पष्ट,
सस्ता
एवं शीघ्र कार्य करनेवाला गुटेनवर्ग का ऐतिहासिक मुद्रण शोध 1440 वें
वर्ष में शुरू हुआ,
जब
गुटेनवर्ग को फस्ट नामक सुनार से बाइबिल छापने का ठेका प्राप्त हुआ।
मुद्रण
क्रांति का बहुआयामी प्रभाव
- छापखाने
की संख्या में वृद्धि के फलस्वरूप पुस्तक निर्माण में अप्रत्यासित वृद्धि
हुई। 15वीं
शताब्दी के उŸारार्द्ध
तक यूरोपीय बाजार में लगभग 2 करोड़
मुद्रित किताबें आई। जिसकी संख्या 16वीं
शताब्दी तक 20
करोड़
हो गई।
- मुद्रण
क्रांति के फलस्वरूप किताबें समाज के सभी तबकों तक पहुँच गई।
- साक्षरता
बढ़ाने हेतु पुस्तकों को रोचक तस्वीरों, लोकगीत
और लोक कथाओं से सजाया जाने लगा। पहले जो लोग सुनकर ज्ञानार्जन करते थे अब
पढ़कर भी कर सकते थे। पढ़ने से उनके अंदर तार्किक क्षमता का विकास हुआ।
- प्रिंट
के प्रति कृतज्ञ लूथर ने कहा- ‘मुद्रण
ईश्वर की दी हुई महानतम देन है सबसे बड़ा तोहफा‘
- मुद्रण
क्रांति से कम पढ़े-लिखे लोग धर्म की अलग-अलग व्याख्याओं से परिचित हुए।
- अलग-अलग
सम्प्रदाय के चर्चों ने स्कूल स्थापित कर गरीब तबके के लोगों को शिक्षित करना
शुरु किया।
- क्रांतिकारी
दार्शनिकों के लेखन ने परंपरा, अंधविश्वास
और निरंकुशवाद की आलोचना पेश की।
- परंपरा
पर आधारित सामाजिक व्यवस्था को दुर्बल किया गया।
- छपाई
ने वाद-विवाद की नई संस्कृति को जन्म दिया।
तकनीकी
विकास
- 18वीं
शदी के अंत तक प्रेस धातु के बनने लगे थे। 19वीं
शदी के मध्य तक न्यूयार्क के रिचर्ड एम. हो. ने शक्ति चालित बेलनाकार प्रेस
को कारगर बना लिया था। इससे प्रतिघंटे 8000 ताव
छापे जा सकते थे।
- शदी
के अंत तक ऑफसेट प्रेस आ गया था, जिससे
छः रंगों में छपाई एक साथ संभव थी।
- 20वीं
शताब्दी के प्रारंभ से बिजली से चलनेवाले छापेखाने ने तेजी से काम करना शुरु
कर दिया।
- पुस्तकें
सस्ती और रोचक कवर तथा पृष्ठ के साथ पाठकों तक पहुँचने लगी।
भारत
में प्रेस का विकास
- भारत
में छापखाना के विकास के पहले हाथ से लिखकर पाण्डुलिपियों को तैयार करने की
पुरानी एवं समृद्ध परम्परा थी। यहाँ संस्कृत, अरबी
और फारसी साहित्य की अनेकानेक तस्वीर युक्त सुलेखन कला से परिपूर्ण साहित्यों
की रचनाएँ होती रहती थी।
- प्रिंटिंग
प्रेस सबसे पहले भारत में पुर्तगाली धर्मप्रचारकों द्वारा 16वीं
शदी में लाया गया।
समाचार
पत्रों की स्थापना
- आधुनिक
भारतीय प्रेस का प्रारंभ 1766 में विलियम
बोल्टस द्वारा
एक समाचार पत्र के प्रकाशन से हुआ।
- 1780 में जे.
के. हिक्की ने ‘बंगाल
गजट‘ नामक
समाचार पत्र प्रकाशित करना प्रारंभ किया।
- नवम्बर
1780 में
प्रकाशित ‘इंडिया
गजट‘ दूसरा
भारतीय पत्र था।
- 18वीं
सदी के अंत तक बंगाल में ‘कलकत्ता
कैरियर‘,
एशियाटिक
मिरर तथा ओरियंटल स्टार, बम्बई
गजट तथा हैराल्ड और मद्रास कैरियर, मद्रास
गजट आदि समाचार पत्र प्रकाशित होने लगे।
- 1821 में
बंगला में ‘संवाद
कौमुदी‘
तथा 1822 में
फारसी में प्रकाशित ‘मिरातुल‘ अखबार
का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। इन समाचार पत्रों का संस्थापक राजा
राम मोहन राय थे
जिन्होंने इन्हें सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन का हथियार भी बनाया।
- 1822 में
बम्बई से गुजराती भाषा में ‘दैनिक
बम्बई‘
समाचार
निकलने लगे।
- द्वारकानाथ
टैगोर,
प्रसन्न
कुमार टैगोर तथा राम मोहन राय के प्रयास से 1830 में
बंगदत की स्थापना हुई।
- 1831 में
‘जामे
जमशेद‘ 1851 में
‘गोफ्तार‘ तथा
‘अखबारे
सौदागर‘
का
प्रकाशन प्रारंभ हुआ।
प्रेस
की विशेषताएँ- समयानुसार बदलते परिप्रेक्ष्य में
- भारत
में दो प्रकार के प्रेस थे- एंग्लो
इंडियन प्रेस और भारतीय प्रेस
- एंग्लो
इंडियन प्रेस की प्रकृति और आकार विदेशी था। यह भारतीयों में ‘फुट
डालो और शासन करो‘
का
पक्षधर था। यह दो सम्प्रदायों के बीच एकता के प्रयास का घोर आलोचक था।
- एंग्लो
इंडियन प्रेस को विशेषाधिकार प्राप्त था। सरकारी खबरें और विज्ञापन इसी को
दिया जाता था। सरकार के साथ इसका घनिष्ठ संबंध था।
- भारतीय
प्रेस अंग्रेजी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में प्रकाशित होते थे।
- 19वीं
तथा 20वीं
सदी में राममोहन राय,
सुरेन्द्रनाथ
बनर्जी,
बाल
गंगाधर तिलक,
दादा
भाई नौरोजी,
जवाहरलाल
नेहरू,
महात्मा
गाँधी,
मुहम्मद
अली,
मौलाना
आजाद आदि ने भारतीय प्रेस को शक्तिशाली और प्रभावकारी बनाया।
भारतीयों
द्वारा प्रकाशित एवं संपादित पत्र
- 1858 में
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ने ‘सोम
प्रकाश‘
का
प्रकाशन साप्ताहिक के रूप में बंगला में प्रारंभ किया। इसने नीलहे किसानों के
हितों का जोरदार समर्थन किया।
- केशवचन्द्र
सेन ने ‘सुलभ
समाचार‘
का
बंगला में दैनिक प्रकाशन किया।
- मोतिलाल
घोष के संपादन में 1868 में
अंग्रेजी-बंगला साप्ताहिक के रूप में अमृत बाजार पत्रिका का प्रेस के इतिहास
में महत्वपूर्ण स्थान है।
- 1878 में
लिटन के वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट से बचने के लिए यह रातों-रात अंगेजी में
प्रकाशित होने लगा।
- बंगाल
में उग्र राष्ट्रवाद को फेलाने का काम अरविंद घोष और वारींद्र घोष ने जुगांतर
तथा वंदेमातरम् के माध्यम से किया।
- मोतिलाल
नेहरू ने 1919 में
इंडिपेंडेंस,
शिव
प्रसाद गुप्त ने हिन्दी दैनिक आज, के.
एम. पन्निकर ने 1922 में
हिन्दुस्तान टाइम्स का संपादन किया।
प्रेस
का राष्ट्रीय आंदोलन में भूमिका तथा प्रभाव
- प्रेस
के माध्यम से राष्ट्रीय नेताओं ने अंग्रेजी राज की शोषणकारी नीतियों का
पर्दाफाश करते हुए जनजागरण फैलाने का कार्य किया।
- विभिन्न
प्रकार के अंग्रजी नीतियों के प्रति व्यापक असंतोष को सरकार के समक्ष
पहुँचाने का कार्य प्रेस ने ही
किया।
- अंग्रेजों
के द्वारा भारत का जो आर्थिक शोषण हो रहा था इसके विरुद्ध प्रेस ने आवाज
उठाई।
- सामाजिक
सुधार के क्षेत्र में,
प्रेस
ने सामाजिक रूढ़ियों,
रीति-रिवाजों, अंधविश्वास
तथा अंग्रेजी सभ्यता के प्रभाव को लेकर लगातार आलोचनात्मक लेख प्रेकाशित हुए।
- दक्षिण
अफ्रिका में गाँधी के प्रयासों का भारतीय प्रेस में उल्लेख किया।
- देश
के राष्ट्रीय आंदोलन को नई दिशा देने एवं राष्ट्र निमार्ण में भी प्रेस की
महत्वपूर्ण भूमिका रही।
- सम्पूर्ण
देश के लोगों के बीच सामाजिक कुरीतियां को दूर करने, राजनितिक
एवं सांस्कृतिक एकता स्थापित करने
का कार्य भी किया गया।
प्रेस
के विरूद्ध प्रतिबंध
समाचार
पत्रों को नियंत्रित करने के लिए कई अधिनियम बनाए गए।
- 1799
का
समाचार पत्रां का पत्रेक्षण अधिनियम- लार्ड
वेल्जली ने फ्रांस के आक्रमण के भय से समाचार पत्रों पर सेन्सर बैठा दिया। इस
अधिनियम के अनुसार समाचार पत्र को संपादक, मुद्रक
एवं स्वामी का नाम स्पष्ट रूप से छापना था।
- 1823
का
अनुज्ञप्ति अधिनियम- 1823 में
जॉन एडम्स जनरल बनते ही अपने प्रतिक्रियावादी विचारों को इस अधिनियम में
व्यक्त किया।
- भारतीय
समाचार पत्रों की स्वतंत्रता 1835- 1823 के
नियम को रद्द कर चार्ल्स मेटकॉफ ने भारतीय समाचार पत्रों के ‘मुक्ति
दाता‘
के
रूप में विकसित हुए। 1856
तक
यह कानुन चलता रहा।
- 1908
का
समाचार पत्र अधिनियम- लार्ड
कर्जन के नीतियों के विरूद्ध उग्र राष्ट्रवाद की भावनाएँ भड़क रही थी। इन्हें
दबाने के लिए 1908 का
न्युज पेपर एक्ट पास किया गया। इसके अनुसार किसी समाचार पत्र की ऐसी सामग्री
जिससे हिंसा अथवा हत्या की प्रेरणा मिले, उसकी
संपत्ति सरकार जब्त कर सकती थी।
- 1951 का
समाचार पत्र अधिनियम- 1951 में
सरकार की संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के
संसोधन और समाचार पत्र अधिनियम पारित कर अब तक के सभी अधिनियमों को रद्द कर
दिया गया। नए कानुन के माध्यम से सरकार मुद्रणालय को आपिŸाजनक
विषय प्रकाशित करने पर जब्त कर सकती थी। प्रकाशतों की जुरी द्वारा परीक्षा
मांगने का अधिकार दे दिया गया। यह अधिनियम 1956 तक
लागु रहा।
- कई
पत्रकार संगठनों द्वारा इसका विरोध करने पर सरकार ने न्यायाधीश जी. एस.
राजाध्यक्ष की अध्यक्षता में एक प्रेस कमीशन नियुक्त किया। इसने 1954 में
अखिल भारतीय समाचार परिषद् के गठन सहित कई सुझाव दिए जो सरकार द्वारा मान लिए
गये।
स्वातंत्र्योत्तर
भारत में प्रेस की भूमिका
- आधुनिक
दौर में प्रेस,
साहित्य
और समाज की समृद्ध चेतना की धरोहर है और पत्र-पत्रिकाएँ दैनिक गतिशीलता की
लेखा है।
- प्रेस
ने समाज में नवचेतना पैदा कर सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक
एवं दैनिक जीवन में क्रांति का सूत्रपात किया।
- प्रेस
ने सामाजिक बुराइयों दहेज प्रथा, विधवा
विवाह,
बालिका
वध,
बाल-विवाह
जैसे मुद्दों को उठाकर समाज के कुप्रथाओं को दूर करने का प्रयास किया।
- यह
समाज को वैज्ञानिक अनुसंधानों, वैज्ञानिक
उपकरणों एवं साधनों से परिचित करता है। पत्रकार विज्ञान के वरदान और अभिशाप
को घटनाओं के माध्यम से समाज के सामने लाते हैं। ताकि सामान्य लोग भी विश्व
कल्याण के संदर्भ में सोच सके।
- आज
प्रेस लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने
हेतु सजग प्रहरी के रूप में हमारे सामने खड़ा है।