पाठ से
प्रश्न 1. गुड्डी अपनी तुलना, बंधुआ मजदूर से क्यों करती है ?
उत्तर – गुड्डी अपनी तुलना, बंधुआ मजदूर से इसलिए करती है क्योंकि जिस प्रकार मजदूर अपनी मर्जी से कुछ भी नहीं कर सकता, उसी प्रकार गुड्डी भी अपनी मर्जी में कुछ नहीं कर सकती। बंधुआ मजदूर को हर क्षण अपने मालिक के इशारे पर नाचते रहना पड़ता है, फिर डाँट सुननी पड़ती है, उसी प्रकार का जीवन गुड्डी का भी है। वह दिन भर घर के काम में व्यस्त रहती है फिर भी उसे धीमर कहा जाता है। सब्जी खराब होने पर डाँट सुननी पड़ती है। वह अपनी मर्जी से कुछ भी नहीं कर सकती। बंधुआ मजदूरों की भाँति गुड्डी भी पराधीनता महसूस करती है।
प्रश्न 2. माँ-बाप के लिए चाय बनाकर लाते समय उसके पैरों में फुर्ती आ गयी – क्यों ?
उत्तर- माँ-बाप के लिए चाय बनाकर लाते समय उसके पैरों में फुर्ती इसलिए आ गयी क्योंकि गुड्डी ने अपनी उपेक्षा संबंधी पत्र प्रधानमंत्री को भेज दी थी। उसे विश्वास हो गया था कि जैसे ही प्रधानमंत्री हमारा पत्र पढ़ेंगे वैसे ही हमें भी बंधुआ मजदूरों की भाँति परतंत्रता के बंधन से मुक्त करा देंगे। वह भी अन्य बच्चों की भाँति पढ़ने के लिए स्कूल जाएगी तथा घरेलू काम से मुक्त हो जाएगी। इसी विश्वास के कारण उसके पैरों में फुर्ती आ गई ।
प्रश्न 3. (i) "लेकिन क्यों नहीं सुनी जाएगी मेरी बात । हिज्जे गलत हों, पर बात तो सही है ।"
(क) ऐसा गुड्डी ने क्यों सोचा ?
उत्तर – गुड्डी ने ऐसा इसलिए सोचा कि सरकार का काम अन्यायी को दंड
देना तथा न्याय की रक्षा करना होता है। उनको मेरी समस्या पर विचार करना है न कि
मेरे हिज्जे की गलती को देखना है।
(ख) यह वाक्य गुड्डी के व्यक्तित्व की किन विशेषताओं को दर्शाता है?
उत्तर – इस वाक्य से स्पष्ट होता है कि गुड्डी स्वाभिमानी एवं शोषण का विरोधी है।
वह लिंग-भेद को सामाजिक बुराई मानती है। वह अपने अधिकार की प्राप्ति के लिए
ही प्रधानमंत्री को पत्र लिखती है और अपनी समस्याओं से अवगत कराती है।
प्रश्न 3. (ii) “टिकट कहाँ से लाऊँ? बिना टिकट के ही भेज देती हूँ । वे तो समझ ही जाएँगे।"
(क) गुड्डी ने ऐसा क्यों सोचा ?
उत्तर- गुड्डी ने ऐसा इसलिए सोचा कि समाज में लड़की को बोझ माना जाता है। इसी विवशता के कारण अपनी मुक्ति के लिए बिना टिकट का पत्र भेज दिया।
(ख) यह वाक्य गुड्डी के किस पक्ष को दर्शाता है?
उत्तर- यह वाक्य गुड्डी की हीनता पक्ष को दर्शाता है। वह लड़की है, इसलिए उसे लड़के जैसी सुविधा प्राप्त नहीं है। उसे विवशतापूर्ण जीवन जीने की मजबूरी है।
प्रश्न 4. पठित पाठ के आधार पर आपके मस्तिष्क में जो दृश्य उत्पन्न होता है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – पठित पाठं में वर्णित विषयों से यह स्पष्ट होता है कि समाज लड़के को भगवान का आशीर्वाद मानते हैं तथा लड़की को अभिशाप । इसीलिए लड़के को बंधनमुक्त । गुड्डी लड़की है,
रखा जाता है और उसकी हर आवश्यकताओं की पूर्ति की जाती इसलिए उससे घर का काम करवाया जाता है। आराम उसके भाग्य में नहीं लिखा होता । लड़कियों का जन्म ही शोषण की चक्की में पीसने के लिए होता है। यह समाज की सोच है, जिसमें लिंग-भेद जैसी सामाजिक बुराई परिलक्षित होती है।
पाठ से आगे
प्रश्न 1. इस कहानी का शीर्षक 'जन्म-बाधा' है। आपकी दृष्टि में ऐसा शीर्षक क्यों दिया गया है?
उत्तर–किसी भी कहानी या निबंध का शीर्षक उसके प्रतिपाद्य विषय के आलोक में दिया जाता है। इस कहानी का शीर्षक 'जन्म-बाधा' इसलिए दिया गया है, क्योंकि लड़की होने के कारण गुड्डी पढ़ाई-लिखाई से वंचित रह जाती है। जबकि बबलू, गुड्डू तथा मन्नू तीनों भाई पढ़ते-लिखते हैं। इन पर परिवार की कोई जिम्मेदारी नहीं है, परन्तु गुड्डी के लिये परिवार का हर काम करना आवश्यक है। यदि उसका जन्म लड़की में न होकर लड़का में होता तो वह भी स्कूल जाती और घर की जिम्मेदारी से बेखबर रहती। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए इस कहानी का शीर्षक 'जन्म-बाधा' दिया गया ।
प्रश्न 2. किन-किन बातों से पता चलता है कि गुड्डी अपनी मुक्ति के लिए दृढ़संकल्प थी ?
उत्तर—गुड्डी अपनी मुक्ति के लिए दृढ़संकल्प थी, इसका पता इन बातों से चलता है कि बबलू द्वारा फेंकी गई लीड की शिकायत पापा से नहीं करती है। पापा के झोले से लिफाफा एवं कागज निकाल लेती है। पत्र लिखने के लिए मौके की तलाश में रहती है। माँ तथा छोटकी को सोते जान पत्र लिखना आरंभ करती है। क्या लिखूँ तथा हिज्जे संबंधी गलती पर अपना विचार प्रकट करती है—“पर बात तो सही है! जो हो, लिख देती हूँ सीधे-सीधी।” भगवान से प्रार्थना करती है कि मेरा सहारा कोई नहीं है, इसलिए पत्र लिखवा दो भगवान। तथा बिना टिकट पत्र भेज देती है। इससे स्पष्ट है कि वह अपनी मुक्ति के लिए दृढ़ संकल्प थी ।
प्रश्न 3. अपनी मुक्ति के लिए गुड्डी प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखती है। इससे इसके माता-पिता परेशानी में पड़ सकते हैं। गुड्डी के इस व्यवहार पर तर्क सहित विचार कीजिए ।
उत्तर – गुड्डी प्रधानमंत्री को जिस प्रकार की चिट्ठी लिखती है, निश्चित रूप से उसके माता-पिता परेशानी में पड़ सकते हैं। छोटे बच्चों को स्कूल नहीं भेजकर उनसे काम करवाना कानूनन अपराध है। लेकिन गुड्डी इस बात से अनजान है। उसे तो अपनी मुक्ति प्यारी है और पढ़ने की इच्छा बलवती है। इन बातों के अलावा उसे किसी बात की फिक्र नहीं। इस प्रकार गुड्डी को हम किसी प्रकार दोषी नहीं मानते।
कुछ करने को
प्रश्न 1. उन कारणों का पता लगाइए जो छोटी-छोटी लड़कियों पर बड़ी जिम्मेदारियाँ लादने के लिए जिम्मेदार हैं ।
उत्तर- छोटी-छोटी लड़कियों पर जिम्मेदारियाँ लाद देने में हमारी परम्परागत सोच जिम्मेदार है। परम्परा से ही ये सभी काम लड़कियों से कराये जाते रहे हैं। गुड्डी के माता-पिता भी इसी परम्परा के शिकार हैं। वे लड़कियों को पढ़ाया जाना आवश्यक नहीं समझते, जबकि विश्व और साथ ही भारत भी इस सोच से बहुत आगे निकल चुका है। अब लड़कों की तरह लड़कियों को भी पढ़ाना अनिवार्य बन चुका है। नैतिक, सामाजिक, कानूनन — सभी दृष्टियों से। लेकिन हमारे समग्र समाज में ऐसी चेतना अभी नहीं आई हैं।
प्रश्न 2. निम्नलिखित कार्य कौन करता है:
(क) गुड़ियों से खेलना। (ख) सिलाई-बुनाई का कार्य करना । (ग) झाडू-बर्तन, चूल्हा-चौका का काम घर में करना। (घ) घर में अपने छोटे भाई-बहनों को संभालना। सभी प्रश्नों का उत्तर 'लड़की' है। सोचिए क्या यह सही है ?
उत्तर – हाँ, यह सही है और शत-प्रतिशत सही है। लेकिन लड़कियाँ आज इन कामों को करते हुए भी पढ़ाई कर रही हैं। कारण कि उनमें पढ़ने की ललक है। लड़की सुलभ इन कामों को भी करती हैं और पढ़ती भी हैं। शायद ही पढ़ने वाली कोई लड़की होगी जिसने कभी गुड़ियों से नहीं खेला हो, सिलाई-बुनाई नहीं की हो, झाडू-बर्तन, चूल्हा, चौका नहीं किया हो और अपने छोटे भाई-बहनों को नहीं सम्भाला हो। फिर भी वे पढ़ाई में लड़कों से आगे ही रहती हैं। उनसे अच्छा अंक लाती हैं और अनेक तो उच्च स्नान प्राप्त करती हैं।
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