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सॉफ्ट लैंडिंग के लिए चंद्रयान-3 को 90० घूमना होगा, पहले यहीं दिक्कत आई थी | सॉफ्ट लैंडिंग की उल्टी गिनती शुरू

सॉफ्ट लैंडिंग के लिए चंद्रयान-3 को 90० घूमना होगा, पहले यहीं दिक्कत आई थी  सॉफ्ट लैंडिंग की उल्टी गिनती शुरू
अंतिम कक्षा में चंद्रयान, आज लैंडर स्वतंत्र होकर चाँद की राह चुनेगा 

इंतजार की घड़ी खत्म होने को है। चंद्रयान-3 ने एक और उपलब्धि हासिल कर ली है। बुधवार को इसे पांचवीं और अंतिम चंद्र कक्षा में पहुंचाने की प्रक्रिया को पूरा कर लिया गया। इस तरह यह चंद्रमा की सतह के और करीब पहुंच गया। प्रपल्शन इंजन की फायरिंग के बाद चंद्रयान की 153 किमी गुणा 163 किमी की कक्षा में स्थापित हो गया है। इसरो के मुताबिक, बुधवार सुबह 8:38 बजे चंद्रयान का इंजन एक मिनट के लिए ऑन किया गया। इसके बाद इसे चंद्रमा की पांचवीं कक्षा में पहुंचा दिया गया। अब चंद्रयान का आर्बिट नहीं बदला जाएगा। गुरुवार की दोपहर 1:08 बजे चंद्रयान-3 का लैंडर अपने प्रपल्शन मॉड्यूल से अलग होकर अकेले यात्रा शुरू करेगा। विक्रम लैंडर धीरे-धीरे अपनी कक्षा को कम करते हुए 100 किमी गुणा 30 किमी की कक्षा में पहुंचेगा।

सॉफ्ट लैंडिंग के लिए चंद्रयान-3 को 90० घूमना होगा, पहले यहीं दिक्कत आई थी

सॉफ्ट लैंडिंग के लिए घूमना होगा, पहले य प्रपल्शन से अलग होने के बाद लैंडर को डीबूस्ट किया जाएगा। यानी उसकी रफ्तार धीमी की जाएगी। यहां से चंद्रमा की न्यूनतम दूरी 30 किमी रह जाएगी। सबसे कम दूरी से ही 23 अगस्त को चंद्रयान की सॉफ्ट लैंडिंग की कोशिश की जाएगी। लैंडर को 30 किमी की ऊंचाई से चंद्रमा की सतह पर लैंड कराने तक की यह प्रक्रिया बहुत महत्वपूर्ण होगी। यानी परिक्रमा करते हुए उसे अचानक 90 डिग्री के कोण पर चंद्रमा की तरफ चलना शुरू करना होगा। लैंडिंग की प्रक्रिया की शुरुआत में चंद्रयान-3 की रफ्तार करीब 1.68 किमी प्रति सेकंड होगी। इसे लेंडर के डीबूस्टर की मदद से कम करते हुए सतह पर सुरक्षित उतरने का प्रयास होगा। चंद्रयान-3 में मौजूद लैंडर में कई पेलोड हैं और इसके पेट में प्रज्ञान रोवर है, जो सॉफ्ट लैंडिंग के तत्काल बाद एक रैंप के जरिए चांद की सतह पर उतरेगा और लैंडर के आगे-पीछे घूमेगा। दोनों ही अनुसंधान करेंगे।

चंद्रयान-2 ने भी ये सब चरण सफलतापूर्वक पूरे किए

चंद्रयान-2 ने भी ये सभी चरण सफलतापूर्वक पूरे कर लिए थे। हम-सॉफ्ट लैंडिंग के अहम पल का इंतजार कर रहे हैं। इस बार यह सफल होगा, क्योंकि हमने चंद्रयान-2 की असफलताओं को समझा है।

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