प्रश्न 1. किस देश द्वारा गैस के उपयोग से यहूदियों को मारा गया था ?
उत्तर – जर्मनी देश द्वारा गैस के उपयोग से यहूदियों को मारा गया था। यह कुकर्म द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान किया गया था।
प्रश्न 2. कीटनाशक में किस रासायनिक पदार्थ का उपयोग होता है ?
उत्तर – कीटनाशक में हाइड्रोजन साइनाइड या मिथाइल अइसो साइनेट नामक रासायनिक पदार्थ का उपयोग होता है ।
III. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न :
प्रश्न 1. गैस रिसाव होने पर किस प्रकार की सावधानी रखनी चाहिए?
उत्तर — गैस रिसाव होने पर तुरत इसकी सूचना निकटवर्ती बस्तियों में कर देनी चाहिए | उनसे कहा जाय कि वे हवा की उल्टी दिशा की ओर भाग कर चले जाएँ । कारण कि गैस हवा के साथ उस दिशा की ओर अधिक जाती है, जिस दिशा में हवा बहती है। अतः उल्टी दिशा में भागने पर गैस का असर कम होगा या नहीं होगा। माना कि हवा पश्चिम से पूरब की ओर बह रही है तो गैस रिसाव होने का पता चलते ही पश्चिम की ओर भागना चाहिए ।
गैस मास्क यदि हो तो उसे तुरत पहल लें । कारखाना के प्रबंधन को चाहिए कि वे निकटवर्ती बस्ती के निवासियों को मुफ्त में मास्क मुहैया करा दें।
रासायानिक आपदा से बचने और अपने कर्मियों तथा निकटवर्ती बस्तियों के लोगों को बचाने के लिए प्रबंधन को तात्कालिक और दीर्घकालिक दोनों प्रकार के प्रबंध करना चाहिए। तात्कालिक उपाय से स्वयं कारखाने के कर्मचारियों को सुरक्षा होगी। इसके लिए उसके परिसर में पर्याप्त जल तथा अग्निशामक सलेंडरों को रखना आवश्यक होता है।
गैस रिसाव होने पर क्या करना चाहिए, इस पर स्पष्ट दिशा-निर्देश लगभग सभी कर्मचारियों और प्रबंधन के सभी वर्गों को दे देना चाहिए ।
रासायनिक आयुधों के निर्माण पर रोक लगाने आवश्यक हैं । रासायनिक खाद, कीटनाशक से उत्पन्न आपदा स्पष्ट दृष्टि में नहीं आती । इसका कुप्रभाव धीरे-धीरे होता है। इससे बचने का उपाय है कि जैविक खाद उपयोग की जाय जो परम्परा से होती आई है। कीटनाशी के लिए रासायनिक दवाओं के बदले नीम की पत्ती के घोल का उपयोग हो । पातालनीम भी उपयोगी होगा ।
प्रश्न 2. रासायनिक आपदा के अन्तर्गत आनेवाली समस्याओं का वर्णन कीजिए ।
उत्तर – रासायनिक आपदा के अन्तर्गत आनेवाली समस्याओं को तीन वर्गों में बाँटा गया है :
(i) विषैले रासायनिक उत्पाद से उत्पन्न छिपी हुई आपदाएँ ।
(ii) रासायनिक युद्ध सामग्री के उपयोग से उत्पन्न आपदाएँ ।
(iii) रासायनिक औद्योगिक इकाइयों में रिसाव और कचरे से उत्पन्न आपदाएँ ।
(i) विषैले रासायनिक उत्पाद से उत्पन्न छिपी हुई आपदाएँ- ऐसी आपदा की जानकारी तुरत नहीं होती । ये धीरे-धीरे असर करती हैं और व्यक्ति से व्यक्ति और पूरे समाज को अपने चपेट में ले लेती है। पहले तो तालाबों और नदियों का जल जहरीला होता है और अन्ततः कुँओं का जल भी जहरीला हो जाता है। कारण कि रासायनिक खाद और कीटनाशी दवाएँ खेतों की मिट्टी से होकर भौम जलस्तर तक पहुँच जाती हैं और जल किसी काम का नहीं रहता। नगरों में जीवाश्म ऊर्जा के उपयोग से वर्षा जल के माध्यम से अनेक जहरीले पदार्थ जल में मिल जाते हैं। जैसे : सल्फर डायक्साइड एवं नाइट्रोजन आक्साइड की मात्रा जल में बढ़ती जाती है। अम्लीय वर्षा से वृक्षों के पत्ते सूख जाते हैं।
(ii) रासायनिक युद्ध सामग्री के उपयोग से उत्पन्न आपदा- युद्ध में रासायनिक आयुधों के अंतर्गत विभिन्न प्रकार की जहरीली गैसों का उपयोग होता है। इसके साथ ही विस्फोटक पदार्थ, जैसे छोटे बमों में भी विषैली गैसें रहती हैं, जिनके उपयोग के बाद वातावरण विषैला हो जाता है । जर्मनी ने तो द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान गैस चेम्बरों में लाखों यहूदियों को मार डाला था । इराक में गैसीय आयुधों के भंडार के सन्देह में अमेरिका ने उसको तबाह कर दिया था ।
(iii) रासायनिक औद्योगिक इकाईयों में रिसाव और कचरे से उत्पन्न आपदा — सन् 1984 ई. में भोपाल गैस त्रासदी ने वहाँ के लोगों को हिलाकर रख दिया था। उस समय उस कारखाने से हाइड्रोजन साइनाइड तथा अन्य अभिक्रियाशील उत्पादों सहित 45 टन मिथाइल आइसो सायनेट गैस 'यूनियन कार्बाइड' के कीटनाशी कारखाने से मध्य रात्रि में रिसकर हवा में फैल गई थी। आसपास के सभी निवासियों का दम घुटने लगा | 2000 लोगों की तत्काल मृत्यु हो गई तथा 10,000 से अधिक लोग अपंग हो गए। 1989 तक मृतकों की संख्या 16,000 तथा घायलों की संख्या 50,000 तक पहुँच गई । तूतीकोरिन में भी ऐसी ही घटना हुई थी । लेकिन इससे बहुत कम लोग कुप्रभावित हुए थे ।
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