III. लघु उत्तरीय प्रश्न :
प्रश्न 1. प्रथम विश्वयुद्ध के उत्तरदायी किन्हीं चार कारणों का उल्लेख करें ।
उत्तर – प्रथम विश्वयुद्ध के लिए उत्तरदायी प्रमुख चार कारण निम्नलिखित थे-
(i) साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्द्धा- कुछ देश पहले ही अनेक उपनिवेश कायम कर चुके थे और कुछ देश बाद में आए । अतः इनके बीच युद्ध अवश्यम्भावी हो गया ।
(ii) उग्र राष्ट्रवाद–19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में यूरोपीय देशों में राष्ट्रीयता की भावना उग्र रूप लेने लगी । जिस देश के जितने अधिक उपनिवेश होते वहाँ के नागरिक उतने ही गौरवान्वित महसूस करते थे ।
(iii) सैन्यवाद — यूरोपीय देश एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए सेना में वृद्धि करने पर उतारू हो गए । कुल. राष्ट्रीय आय का 85% तक सैनिक तैयारियों पर व्यय करने लगे। 1912 में जर्मनी ने इम्परेटर नामक एक विशाल जहाज बना लिया।
(iv) गुटों का निर्माण – साम्राज्यवादी लिप्सा में लिप्त यूरोपीय देश विभिन्न गुटों में बँटने लगे । गुट बनाने में उन देशों की प्रमुखता थी, जो उपनिवेश कायम करने में पिछड़े हुए थे । ।
प्रश्न 2. त्रिगुट (Triple Alliance) तथा त्रिदेशीय संधि (Triple Entente) में कौन-कौन देश शामिल थे? इन गुटों की स्थापना का उद्देश्य क्या था ?
उत्तर – त्रिगुट (Triple Alliance) में जर्मनी, इटली और आस्ट्रिया-हंगरी आदि तीन देश थ | इसी प्रकार त्रिदेशीय संधि (Triple Entente) में भी तीन ही देश थे— फ्रांस, इंग्लैंड तथा रूस
इन गुटों की स्थापना का उद्देश्य था कि युद्ध की स्थिति में एक गुट दूसरे गुट की सहायता करेगा । यदि आवश्यकता पड़ी तो युद्ध में भी वे भाग लेंगे।
प्रश्न 3. प्रथम विश्वयुद्ध का तात्कालिक कारण क्या था ?
उत्तर – प्रथम विश्वयुद्ध की शुरुआत एक मामूली घटना से हुई। आस्ट्रिया का राजकुमार आर्कड्यूक फर्डिनेण्ड बोस्निया की राजधानी सेराजेवो गया था। वहीं 28 जून, 1914 को उसकी हत्या हो गई । आस्ट्रिया ने इसका सारा दोष सर्बिया के ऊपर मढ़ दिया। उसने सर्बिया के समक्ष अनेक माँगें रख दीं। सर्बिया ने इन माँगों को मानने से इंकार कर दिया। उसका कहना था कि इस हत्याकांड में उसका कोई हाथ नहीं है। फल हुआ कि 28 जुलाई, 1914 को आस्ट्रिया ने सर्बिया के विरुद्ध युद्ध आरम्भ कर दिया। रूस, ने॰सर्बिया को मदद का आश्वासन दिया। फलतः जर्मनी ने आस्ट्रिया के पक्ष में रूस और फ्रांस दोनों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी । तुरत ब्रिटेन भी जर्मनी के विरुद्ध .. मैदान में उतर आया और प्रथम विश्वयुद्ध आरम्भ हो गया ।
प्रश्न 4. सर्वस्लाव आंदोलन का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर–सर्वस्लाव आंदोलन का तात्पर्य था स्लाव लोगों को एकत्र कर एक राष्ट्र के रूप में स्थापित करना। तुर्की साम्राज्य में तथा आस्ट्रिया हंगरी में स्लाव जातियों की बहुलता थी । उन्होंने सर्वस्लाव आन्दोलन आरंभ कर दिया । आन्दोलन इस सिद्धांत पर आधारित था कि यूरोप की सभी स्लाव जाति के लोग एक राष्ट्र हैं। इनका एक अलग देश बनाना चाहिए। वास्तव में यह यूरोप में उग्र राष्ट्रवाद का एक प्रतिफल था।
प्रश्न 5. उग्र राष्ट्रीयता प्रथम विश्वयुद्ध का किस प्रकार एक कारण थी ?
उत्तर—उग्र राष्ट्रीयता यूरोप की ही देन थी । राष्ट्रवाद इस प्रकार लोगों के जेहन में समा गया था कि एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र को सदा नीचा दिखाने का प्रयास करने लगा। जिन जातियों का कोई राष्ट्र नहीं था और वे इधर-उधर कई देशों में फैले हुए थे, वे भी एक राष्ट्र के रूप में अपने को स्थापित करना चाहते थे। राष्ट्रवाद के चलते ही सैन्यवाद की भावना बढ़ने लगी। फिर सैन्यवाद का परिणाम हुआ कि राष्ट्र गुटों में बँटने लगे। छोटी-मोटी घटना को भी कोई राष्ट्र बरदाश्त करने की स्थिति में नहीं था। जिसका परिणाम हुआ कि प्रथम विश्वयुद्ध अवश्यम्भावी लगने लगा और 1914 में आरम्भ भी हो इस प्रकार हम देखते हैं कि उग्र राष्ट्रवाद ही प्रथम विश्वयुद्ध का कारण था।
प्रश्न 6. 'द्वितीय विश्वयुद्ध प्रथम विश्वयुद्ध की ही परिणति थी ।' कैसे ?
उत्तर – प्रायः यह कहा जाता है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के बीज वर्साय की संधि में ही छिपे थे । विजयी देशों ने विजित देशों को ऐसी-ऐसी संधियों में बाँधा की कि वे खून का घूँट पीकर रह गए। जिस प्रकार पराजित राष्ट्रों पर वर्साय की संधि के निर्णय थोपे गए, इससे स्पष्ट था कि जल्द एक और युद्ध होकर रहेगा। छोटे-छोटे पराजित राज्यों से अलग-अलग संधियाँ की गईं। लेकिन जर्मनी को तो पंगु बनाकर छोड़ा गया था। उसके द्वारा जीते गए क्षेत्रों से तो उसे बेदखल किया ही गया, उसके अपने देश के एक बड़े भाग से भी उसे वंचित कर दिया गया। इसके अलावा उसपर भारी जुर्माना भी थोपा गया जिसे देना उसकी क्षमता के बाहर था । जर्मनी की जनता अपने को अपमानित महसूस कर रही थी । इसी समय हिटलर नामक एक विलक्षण पुरुष का वहाँ प्रादुर्भाव हुआ । उसने जुर्माने की रकम देने से इंकार कर दिया । धीरे-धीरे अपने देश के भागों पर अधिकार भी जमाने लगा | फिर विश्व दो गुटों में बँट गया और जैसे ही जर्मनी ने पोलैंड पर आक्रण किया कि द्वितीय विश्वयुद्ध आरम्भ हो गया ।
प्रश्न 7. द्वितीय विश्वयुद्ध के लिए हिटलर कहाँ तक उत्तरदायी था?
उत्तर – द्वितीय विश्वयुद्ध के लिए हिटलर किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं था । उसे उत्तरदायी ठहरानेवाले वे ही लोग हैं, जिन्होंने जर्मनी को अपमानित किया था। कोई भी देश इतना अपमान बरदाश्त नहीं कर सकता था । अतः अपने अपमान का बदला लेने के लिए हिटलर ने जो किया, वह पूर्णतः सही था । यदि मेरे देश को कोई इतना अपमानित करे तो मैं भी वही करूँगा जो हिटलर ने किया । वास्वत में उसे उत्तरदायी ठहरानेवाले वही मुट्ठी भी कम्युनिस्ट तथा गोरी चमड़ीवाले फिरंगियों की हाँ-में-हाँ मिलानेवाले हैं। वह भी अपने लाभ के लिए । यदि ऐसी बात नहीं थी तो पूर्वी जर्मनी से क्यों रूस को भागना पड़ा ? बर्लिन की दीवार क्यों तोड़नी पड़ी ?
प्रश्न 8. द्वितीय विश्वयुद्ध के किन्हीं पाँच परिणामों का उल्लेख करें ।
उत्तर – द्वितीय विश्वयुद्ध के पाँच प्रमुख परिणाम निम्नांकित थे :
(i) धन-जन की अपार हानि,
(ii) यूरोपीय श्रेष्ठता और उपनिवेशों का अन्त,
(iii) इंग्लैंड की शक्ति का ह्रास तथा रूस और अमेरिका के वर्चस्व की स्थापना,
(iv) संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्थापना, जिसे आजकल 'संयुक्त राष्ट्र' कहते हैं ।
(v) विश्व में गुटों का निर्माण तथा निर्गुट देशों में एकत्व ।
प्रश्न 9. तुष्टिकरण की नीति क्या है ?
उत्तर – तुष्टिकरण की नीति यह है कि अपने विरोधी को दबाने के लिए अपने ही किसी दुश्मन को सह देना और उसके करतूतों की ओर से आँखें मूँदे रहना । इंग्लैंड ने जर्मनी को इसलिए बढ़ने का अवसर देता रहा ताकि साम्यवादी देश रूस को वह हरा दे । लेकिन ऐसा हुआ नहीं। जर्मनी ने ब्रिटिश सह प्राप्तकर रूस की ओर तो बढ़ता ही रहा, इंग्लैंड को भी कम तबाह नहीं किया। तुष्टिकरण एक देश का दूसरे देश के साथ भी हो सकता है और एक देश के अन्दर वोट की लालच में किसी खास गुट बढ़ावा देकर भी हो सकता है। लेकिन इतना सही है कि तुष्टिकरण की नीति का परणाम सदैव बुरा ही होता है ।
प्रश्न 10. राष्ट्रसंघ क्यों असफल रहा ?
उत्तर – राष्ट्रसंघ की स्थापना तो हुई, लेकिन उसकी शक्तियाँ भ्रामक थीं। उसके सदस्य राष्ट्र उसे उचित सहयोग नहीं देते थे । अमेरिका ने ही राष्ट्रसंघ की स्थापना करायी थी, लेकिन वह सदस्य नहीं बना । आरम्भ में छोटे-छोटे राज्यों के मनमुटावों को तो सुलझा लिया, लेकिन जब बड़े शक्तिशाली देशों का सवाल उठा तो राष्ट्रसंघ ने हाथ खड़े कर दिए । शक्तिशाली देश हर नियम की व्याख्या अपने हक में करने लगे। बाद में जब हिटलर का समय आया तो उसने तो राष्ट्रसंघ को ठेंगा तक दिखाना शुरू कर दिया । वह उसके किसी बात को मानने से इंकार करने लगा। फल हुआ कि राष्ट्रसंघ पंगु हो गया और अंततः वह असफल सिद्ध हो गया ।