पालमपुर गाँव का परिचय :-
- पालमपुर में कृषि ही प्रमुख उत्पादन प्रक्रिया है । गाँव में 450 परिवार रहते है । 150 परिवारों के पास , खेती के लिए भूमि नहीं है । बाकी 240 परिवारों के पास 2 हेक्टेयर से कम क्षेत्रफल वाले छोटे भूमि के टुकड़े हैं ।
- गांव की कुल जनसंख्या का एक तिहाई भाग दलित
या अनुसूचित जातियों का है । इनके घर गांव के एक कोने में छोटे घर होते हैं जो कि
मिट्टी और फूस से होते हैं ।
- गाँव में ज़्यादातर भूमि के स्वामी उच्च जाति के 80 परिवार है । उच्च जाति के मकान ईट और सीमेंट के बने हुए हैं ।
- पालम पुर गांव में शिक्षा के लिए – एक हाई
स्कूल दो प्राथमिक विद्यालय , एक
स्वास्थ्य केन्द्र और एक निजी अस्पताल भी है ।
मुख्य उत्पादन गतिविधियाँ :-
गांव के कुल कृषि क्षेत्र के केवल 40 प्रतिशत
भाग में सिंचाई होती है । अधिक उपज
पैदा करने वाले बीज ( HYV ) की सहायता से गेहूँ
की उपज 1300 किलोग्राम प्रति
हेक्टेयर से बढ़कर 3200 किलोग्राम हो गई है ।
पालम पुर गांव में 25 प्रतिशत
लोग गैर कृषि कार्यो में लगे हुए हैं जैसे डेयरी दुकानदारी , लघुस्तरीय
निर्माण , उद्योग , परिवहन इत्यादि ।
गैर कृषि क्रियाएँ :-
अन्य उत्पादन गतिविधियों में जिन्हें गैर
कृषि क्रियाएँ कहा गया है ‘ लघु
विनिर्माण , परिवहन , दुकानदारी आदि शामिल
हैं ।
उत्पादन :-
वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन के लिए चार
चीजें आवश्यक है :-
भूमि
तथा अन्य प्राकृतिक संसाधन :- जल , वन , खनिज
श्रम :- काम करने वाले लोग
2. कार्यशील पूंजी :- कच्चा माल , नकद पूंजी
ज्ञान
एवं उघम मानव पूंजी
- पहली आवश्यकता है भूमि तथा अन्य प्राकृतिक संसाधन जैसे जल , वन खनिज की भी आवश्यकता है ।
- दूसरी
आवश्यकता है श्रम अर्थात् जो लोग काम करेगें । कुछ उत्पादन क्रियाओं
में शिक्षित कर्मियों की भी आवश्यकता है ।
औज़ार , मशीन , भवन :- औज़ारों तथा मशीनों में अत्यंत साधारण औज़ार जैसे किसान का हल से लेकर परिष्कृत मशीनें जैसे – जेनरेटर , टरबाइन , कंप्यूटर आदि आते हैं । औज़ारों , मशीनों और भवनों का उत्पादन में कई वर्षों तक प्रयोग होता है और इन्हें स्थायी पूँजी कहा जाता है ।
कच्चा माल और नकद मुद्रा :- उत्पादन में कई प्रकार के कच्चे माल की आवश्यकता होती है , जैसे बुनकर द्वारा प्रयोग किया जाने वाला सूत और कुम्हारों द्वारा प्रयोग में लाई जाने वाली मिट्टी । उत्पादन के दौरान भुगतान करने तथा ज़रूरी माल खरीदने के लिए कुछ पैसों की भी आवश्यकता होती है । कच्चा माल तथा नकद पैसों को कार्यशील पूँजी कहते हैं ।
एक चौथी आवश्यकता भी होती है मानव पूंजी :- उत्पदन करने के लिये – भूमि श्रम और भौतिक पूंजी को एक साथ करने योग्य बनाने के लिए ज्ञान और उद्यम की आवश्यकता है जिसे मानव पूंजी कहा जाता है ।
बाजार :- उत्पादित वस्तुओं के अन्तिम उपभोग हेतु
प्रतिस्पर्धा के लिये बाजार भी एक आवश्यकत तत्व है ।
उत्पादन के कारक :- उत्पादन
भूमि , श्रम और पूँजी को संयोजित करके संगठित होता
है , जिन्हें उत्पादन के कारक कहा जाता है ।
जमीन मापने की
ईकाई :- 1 हेक्टेयर 10,000 वर्ग मी
पालमपुर के लोगों का मुख्य पेशा कृषि
उत्पादन है । यहां काम करने वाले लोगों में 75 प्रतिशत लोग अपने जीवनयापन के लिए खेती पर निर्भर
है ।
कृषि ऋतु को मुख्यतः तीन
भागों में बाँटा गया है
वर्षा
ऋतु ( खरीफ़ ) :-
·
अवधि :- जुलाई – अक्टूबर
·
फसल :- ज्वार , बाजरा , चावल कपास , गन्ना तम्बाकु आदि ।
शरद् ऋतु ( रबी ) :-
·
अवधि :- अक्टूबर – मार्च
·
फसल :- गेहुँ , सरसों , दालें , आलु आदि ।
ग्रीष्म
ऋतु ( जायद ) :-
·
अवधि :- मार्च – जून
·
फसल :- तरबूज , खीरा , फलियाँ सब्जियाँ फूल इत्यादि ।
बिजली के विस्तार ने सिंचाई व्यवस्था में
सुधार हुआ परिणाम स्वरूप किसान दोनों खरीफ़ ( Kharif ) और रबी
( Rubi ) दोनों ऋतुओं की फसल उगाने में सफल हो सके
हैं ।
बहुविघ फसल
प्रणाली :- एक ही भूमि के टुकड़े से उत्पादन बढ़ाने का
तरीका ( एक साल में किसी उत्पन्न करना । पालमपुर के किसान कम से कम दो मुख्य फसल
उगाते है , तीसरी फसल के रूप में आलू पैदा कर रहे हैं
।
खेती करने के
तरीके :-
परम्परागत
कृषि :-
·
कृषि में पारम्परिक बीजों का प्रयोग ।
·
कम सिचांई की आवश्यकता ।
·
उर्वरको के रूप में गाय के गोबर अथवा दूसरी प्राकृतिक खाद का
प्रयोग ।
·
पारम्परिक हल का प्रयोग ।
·
कुओं नदी , रहट , तालाब से सिंचाई ।
आधुनिक
कृषि :-
·
कृषि में अधिक उपज देने वाले HYV का प्रयोग ।
·
अधिक सिंचाई की आवश्यकता ।
·
रासायनिक खाद और कीटनाशकों का प्रयोग ।
·
मशीनों का प्रयोग ।
·
नलकूपों और पम्पिंग सेट के द्वारा सिंचाई ।
हरित क्रान्ति :- हरित
क्रान्ति द्वारा भारतीय कृषकों ने अधिक उपाज वाले बीजो ( HYV के
द्वारा गेहुँ और चावल की खेती करना सीखा ।
हरित क्रान्ति से
भारतीय कृषि पर पड़े प्रभाव :-
·
हरित क्रान्ति ने भारतीय कृषकों को ज्यादा उपज वाले बीज HYV के द्वारा चावल और गेहूँ की कृषि करने
के तरीके सिखाये ।
·
परम्परागत बीजों की तुलना में HYV अधिक उपज वाले बीज सिद्ध हुए ।
·
किसानों ने कृषि में ट्रेक्टर और फसल काटने की मशीनों का उपयोग
करना प्रारम्भ कर दिया ।
·
रसायनिक खादों का प्रयोग करना शुरू किया ।
·
प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग किया गया ।
हरित क्रान्ति से
मृदा को
नुकसान :-
·
रासायनिक उर्वरकों के कारण मृदा की उर्वरता नष्ट होने लगी ।
·
भू – जल के अति प्रयोग से भौमजल स्तर (
भूमि जलस्तर ) गिरने लगा ।
·
रासायनिक उवर्रक आसानी से पानी में घुलकर मिट्टी से नीचे चले जाते
हैं और जल को दुषित करते हैं ।
·
ये बैक्टीरिया और सूक्ष्य जीवाणु नष्ट कर देते हैं जो मिट्टी के
लिए उपयोगी हैं उर्वरकों के अति प्रयोग से भूमि खेती के योग्य नहीं रहती ।
·
अनेक क्षेत्रों में हरित क्रान्ति के कारण उर्वरकों के अधिक प्रयोग
से मिट्टी की उर्वरता कम हो गई ।
·
इसके अतिरिक्त नलकूपों से सिंचाई के कारण भौम जल स्वर कम हो गया और
प्रदुषण की बढ़ गया ।
पालमपुर में भूमि
का वितरण :-
पालमपुर में 450 परिवारों
में से लगभग एक तिहाई अर्थात् 150 परिवारों के पास
खेती के लिये भूमि नहीं हैं जो अधिकाशत : दलित है ।
240 परिवारों
जिनके पास भूमि नहीं है 2 हेक्टेयर से भी कम क्षेत्रफल वाले टुकड़ों
पर खेती करते हैं ।
8 के ऐसे
टुकड़ों पर खेती करने से किसानों के परिवार को पर्याप्त आमदनी नहीं होती ।
पालमपुर में मझोले किसान और बड़े किसानों
के 60 परिवार हैं जो 2 हेक्टेयर
से अधिक भूमि पर खेती करते है ।
कुछ बड़े किसानों के पास 10 हेक्टेयर
या इससे अधिक भूमि है ।
पालम पुर गांव में
भूमिहीन किसानों का संघर्ष :-
·
भूमिहीन किसान दैनिक मज़दूरी पर काम करने के लिये मजबूर है ।
·
उन्हें अपने लिए प्रतिदिन काम ढूंढते रहना पड़ रहा है ।
·
सरकार द्वारा मज़दूर की दैनिक दिहाड़ी न्यूनतम रूप में 60 रू 0 निर्धारित की गई है ।
·
परन्तु केवल मात्र 35-40 रुपये ही मिलते है ।
·
खेतिहर श्रमिकों में अधिक स्पर्धा के कारण ये लोग कम वेतन में भी
कार्य करने के लिए तैयार हो जाते हैं ।
·
खेतीहर श्रमिक कर्ज के कारण अत्याधिक कष्ट झेल रहे हैं ।
पालमपुर के
दुकानदार :-
·
दुकान पर प्रतिदिन की वस्तुओं को थोक रेट पर खरीदते है और गाँव में
बेचते है ।
·
पालमपुर में ज्यादा लोग व्यापार ( वस्तु विनियम ) नहीं करते ।
·
गाँव में छोटे जनरल स्टोरो में चाल , गेहूँ चाय , तेल बिस्कुट साबुन , टूथ पेस्ट , बेट्री , मोमबत्ती , कापियां पैन पेनसिल तथा कुछ कपड़े भी
बेचते हैं ।
·
कुछ परिवारों ने जिनके घर बस स्टैंड के निकट होते है अपने घर के एक
भाग में ही छोटी दुकान खोल ली है ।
·
वस्तुओं के साथ – साथ खाने की चीजे भी बेचते हैं ।
पालमपुर में गैर
कृषि क्रियाएं कौन सी है?
कृषि का अर्थ होता है खेती करना, वही गैर
कृषि क्रिया का अर्थ है वह क्रिया जिसमें कृषि सम्मिलित न हो । जैसे दूध बेचना, खनन
कार्य और हस्तशिल्प आदि कार्य ।
पालमपुर में कार्यशील जनसंख्या का केवल 25% भाग गैर
कृषि कार्यों में संलग्न है ।
पालमपुर में मुख्य गैर कृषि क्रियाएं
निम्नलिखित हैं:
डेयरी
:- पालमपुर गांव के लोग भैंस पालते हैं और दूध को निकट के बड़े
गांव रायगंज में जहां दूध संग्रहण एवं शीतलन केंद्र खुला हुआ है में बेचते हैं ।
लघु
स्तरीय विनिर्माण :- पालमपुर में भी निर्माण कार्य छोटे पैमाने
पर किया जाता है और गांव के लगभग 50 लोग
विनिर्माण कार्यों में लगे हुए हैं ।
कुटीर
उद्योग :- गांव में गन्ना पेरने वाली मशीन लगी है। यह
मशीनें बिजली से चलाई जाती है । किसान स्वयं उगाए तथा दूसरों से गन्ना खरीद कर
गुड़ बनाते हैं और सहायपुर में व्यापारियों को बेचते हैं ।
व्यापार
कार्य :- पालमपुर के व्यापारी शहरों के थोक बाजारों
से अनेक प्रकार की वस्तुएं खरीदते हैं तथा उन्हें गांव में लाकर बेचते हैं । जैसे
चावल, गेहूं, चाय, तेल-साबुन
आदि ।
परिवहन
:- पालमपुर के लोग अनेक प्रकार के वाहन चलाते
हैं जैसे रिक्शा, जीप, ट्रैक्टर
आदि । यह वाहन वस्तुओं व यात्रियों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते हैं और
इसके बदले में वाहन चालकों को किराए के रूप में पैसे मिलते हैं ।
प्रशिक्षण
सेवा :- पालमपुर गांव में एक कंप्यूटर केंद्र खुला हुआ है इस
केंद्र में कंप्यूटर प्रशिक्षण के रूप में दो कंप्यूटर डिग्री धारक महिलाएं भी काम
करती हैं । बहुत संख्या में गांव के विद्यार्थी वहां कंप्यूटर सीखने भी आते हैं ।
पालमपुर में
लघुस्तरीय विनिर्माण उद्योग की विशेषताएँ :-
·
सरल उत्पादन विधियों का इस्तेमाल ।
·
पारिवारिक श्रम द्वारा घरों पर काम करना ।
·
श्रमिकों को भी कई बार किराए पर रखा जाता है ।
·
कम लागत पूंजी ।
· कम समय में तैयार माल ।
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