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क्लास 9 हिंदी (गोधुली)
प्रश्न 1. लेखक ने ऐसा क्यों कहा है कि कहानी लिखने योग्य प्रतिभा भी मुझमें नहीं है जबकि यह कहानी श्रेष्ठ कहानियों में एक है ?उत्तर – कहानीकार शिवपूजन सहाय ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि यह उनकी आरंभिक रचना थी। प्रारंभ में हर लेखक को यह संदेह बना रहता है कि उसकी रचना अच्छी होगी या नहीं। इसका मुख्य कारण यह है कि संपादन कार्य में व्यस्त रहने के कारण उन्हें स्वलेखन का बहुत कम समय मिलता था । साथ ही, लेखक ने स्वयं कहा भी है— 'मैं कहानी लेखक नहीं हूँ। कहानी लिखने योग्य प्रतिभा भी मुझमें नहीं है। कहानी लेखक को स्वभावतः कला मर्मज्ञ होना चाहिए और मैं साधारण कलाविद् भी नहीं हूँ । किन्तु "कुशल कहानी लेखकों का 'प्लॉट' पा गया हूँ ।” अतः इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक ने यह बताना चाहा है कि कथानक उपयुक्त होने पर कहानी अच्छी हो जाती है।
प्रश्न 2. लेखक ने भगजोगनी नाम ही क्यों रखा ?
उत्तर – लेखक ने लड़की का नाम 'भगजोगनी' इसलिए रखा, क्योंकि एक तो वह देहाती लड़की थी, दूसरी बात यह है कि वह अतिसुन्दर थी तथा अपने बाप की एकमात्र संतान रह गई थी, जो परिवार में भगजोगनी की भाँति टिमटिमा रही थी ।
प्रश्न 3. मुंशीजी के बड़े भाई क्या थे?
उत्तर – मुंशीजी के बड़े भाई अँगरेजी जमाने में पुलिस-दारोगा थे ।
प्रश्न 4. दारोगा जी की तरक्की रुकने की क्या वजह थी ?
उत्तर – दारोगा जी की तरक्की रुकने की वजह उनकी घोड़ी थी । यद्यपि घोड़ी सात रुपये में खरीदी गई थी; परन्तु तुर्की घोड़ों का कान काटती थी । वह बारूद की पुड़िया थी । बड़े-बड़े अँगरेज अफसर उस पर दाँत गड़ाए हुए थे; मगर दारोगा जी ने बेचना स्वीकार नहीं किया। फलतः काबिल, मेहनती, ईमानदार, दिलेर तथा मुस्तैद दारोगा होते हुए भी दारोगा के दारोगा ही रह गए, तरक्की नहीं हुई ।
प्रश्न 5. मुंशी जी अपने बड़े भाई से कैसे उॠण हुए ?
उत्तर – दारोगा जी अपनी सारी कमाई अपने जीवन काल में ही फूँक डाला था । उनके मरने के बाद मुंशी जी उनकी घोड़ी बेचकर धूमधाम से उनका श्राद्धादि कर्म करके अपने बड़े भाई दारोगा जी से उऋण हुए।
प्रश्न 6. 'थानेदार की कमाई और फूस का तापना दोनों बराबर है' लेखक ने ऐसा क्यों कहा है ?
उत्तर – लेखक ने ऐसा इसलिए कहा है कि दारोगा जी के मरते ही घी के दीए जलाने वाले मुंशीजी दाने-दाने के लिए तरसने लगे। पैसे के अभाव में घोड़ी बेचकर उनका श्राद्ध किया गया । चुपड़ी चपातियाँ चबाने वाले दाँत अब मुट्ठी भर चने चबाकर दिन गुजारने लगे । अतः लेखक के कहने का तात्पर्य यह है कि भ्रष्ट तरीके से कमाई गई सम्पत्ति टिकाऊ नहीं होती। जिस प्रकार घास की आग क्षणिक होती है, उसी प्रकार थानेदार की कमाई क्षणिक होती है। यहाँ यह कहावंत चरितार्थ होती है 'जो धन जैसे आता है वह धन वैसे ही चला जाता है ।' अर्थात् मेहनत से कमाई गई सम्पत्ति ही टिकाऊ होती है क्योंकि इसमें खून-पसीना एक करना पड़ता है जबकि पुलिस की कमाई मुफ्त की होती है, इसलिए टिकाऊ नहीं होती।
प्रश्न 7. 'मेरी लेखनी में इतना जोर नहीं' - लेखक ऐसा क्यों कहता है ?
उत्तर – लेखक भगजोगनी की अपूर्व सुन्दरता तथा उसकी दर्दनाक गरीबी देखकर विचलित हो जाता है। उसका कलेजा काँप जाता है । वह गरीबी के इस भयावने चित्र को इस प्रकार अंकित करना चाहता है कि पाठक के मानव-पटल को झकझोर सके । इसलिए भड़कीली भाषा में लिखना नहीं चाहता है, क्योंकि भाषा में गरीबी को ठीक-ठीक चित्रित करने की शक्ति नहीं होती, भले ही वह राजमहलों की ऐश्वर्य-लीला और उसके विशाल वैभव के वर्णन करने में समर्थ हो । अतः लेखक का मानना है कि कहानी की सफलता जीवन के सम्यक चित्रण पर निर्भर करती है न कि भाषा के प्रवाह पर । इसीलिए लेखक ने कहा है कि मेरी लेखनी में इतना जोर नहीं, क्योंकि यह लेखक का आरंभिक प्रयास था । इसे लेखक की महानता भी कहा जा सकता है ।
प्रश्न 8. भगजोगनी का सौन्दर्य क्यों नहीं खिल सका ?
उत्तर – भगजोगनी का जन्म दारोगा जी के मरने के बाद हुआ था । दारोगाजी की मरते ही मुंशीजी की सारी अमीरी घुस गई थी । बटेरों के शोरबा सुड़कने वाले मुंशीजी मटर का सत्तू सरपोटने पर मजबूर हो गए थे । बेचारी भगजोगनी थी तो अति सुन्दर लेकिन दरिद्रता रूपी राक्षसी ने उस सुन्दरता - सुकुमारी का गला दबा दिया था। वह दानेदाने को तरसती थी, एक बित्ता कपड़े के लिए मुहताज थी । सिर में लने के लिए चुल्लू भर सरसों का तेल कौन कहें, अलसी का तेल भी नदारत था । भरपेट भोजन के अभाव में शरीर हड्डियों का खंडहर बन गया था। इसी गरीबी एवं विवशता के कारण भग़जोगनी का सौन्दर्य नहीं खिल सका ।
प्रश्न 9. मुंशीजी गल फाँसी लगाकर क्यों मरना चाहते थे ?
उत्तर – घी के दीए जलानेवाले मुंशीजी दारोगा जी के मरते ही दाने-दाने के तरसने लगे। बेटी भगजोगनी भीख माँगकर अपने पेट की ज्वाला शांत करती थी तथा एकाध फँका चना-चबेना पिता के लिए भी लेते आती थी, किंतु जब भीख नहीं मिलता था और शाम को उनके पास जाकर धीमी आवाज में कहती कि बाबूजी भूख लगी है। कुछ हो तो खाने को दो । अपनी इस दुर्दशा की कहानी लेखक को सुनाते हुए मुंशीजी कहते हैं कि उस वक्त जी चाहता है कि गल - फाँसी लगाकर मर जाऊँ । अर्थात् अपनी अति दयनीय दशा के कारण मुंशीजी गले में फाँसी लगाकर मरना चाहते हैं ।
प्रश्न 10. भगजोगनी का दूसरा वर्तमान नवयुवक पति उसका ही सौतेला बेटा है - यह घटना समाज की किस बुराई की ओर संकेत करती है और क्यों ?
उत्तर – प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कहानीकार ने समाज में नारी का स्थान निर्धारित करने के क्रम में तिलक- दहेज की निर्मम प्रथा तथा वृद्ध विवाह की विसंगतियों की ओर संकेत किया है, क्योंकि तिलक- दहेज की क्रूरता के कारण भगजोगनी जैसी अपूर्व सुन्दरी एक वृद्ध के गले में बाँध दी जाती है जो तरुणाई की सीढ़ी पर पैर रखते-रखते विधवा हो जाती है और अपने सौतेले बेटे की पत्नी बनने को विवश हो जाती है।
लेखक के कहने का उद्देश्य है कि सामाजिक विद्रुपता के कारण ही भगजोगनी को सामाजिक मर्यादाओं का उल्लंघन करना पड़ा। क्योंकि यदि तिलक-दहेज बाधा नहीं बनते और उसका विवाह किसी युवक के साथ होता तो वह ऐसा कदम कभी नहीं उठाती । अतः दोषपूर्ण सामाजिक व्यवस्था ही नारी को नरक में पैर रखने के लिए प्रेरित करती है । नारी भी समाज का ही अंग है। उसमें भी सम्मान-असम्मान की परख होती है तथा स्वतंत्र एवं सुखपूर्ण जीवन व्यतीत करने की इच्छा होती है, परन्तु पुरुष वर्ग उसे परतंत्रता की बेड़ी में जकड़ नारकीय जीवन व्यतीत करने को विवश कर देता है। नारी के प्रति ऐसी कुप्रथा का अन्त होना आवश्यक है, ताकि दूसरी स्त्री को भगजोगनी बनने पर विवश न होना पड़े ।
प्रश्न 11. इस कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखें ।
उत्तर- संकेत : छात्र पृष्ठ 6 पर पाठ का सारांश देखें ।
प्रश्न 12. आशय स्पष्ट करें :
(क) 'जो जीभ एक दिन बटेरों का शोरबा सुड़कती थी, अब वह सराह- सराह मटर का सत्तू सरपोटने लगी । चुपड़ी चपातियाँ चबानेवाले दाँत अब चंद चने चबाकर गुजारने लगे ।'
(ख) 'सचमुच अमीरी की कब्र पर पनपी हुई गरीबी बड़ा ही जहरीली होती हैं।'
उत्तर- संकेत : (क) के लिए पृष्ठ 8 पर व्याख्या संख्या (1) तथा (ख) के लिए पृष्ठ 9 पर व्याख्या संख्या (3) देखें ।
(व्याकरण संबंधी प्रश्न एवं उत्तर ) :
प्रश्न 1. निम्नलिखित मुहावरों का वाक्य-प्रयोग द्वारा अर्थ स्पष्ट करें :
बारूद की पुड़िया होना, निबुआ नोन चटाना, घी के दिए जलाना, सुबह का चिराग होना, पाँचों उँगलियाँ घी में, कोढ़ में खाज होना, कलेजा काँपना, बाट जोहना, दाँत दिखाना, छाती पर पत्थर रखना, टन बोल जाना, कलेजा टूक-टूक हो जाना ।
उत्तर :
बारूद की पुड़िया होना – कृष्ण को छोटा मत समझो, वह तो बारूद की पुड़िया है।
निबुआ नोन चटाना– गोपी यहाँ से कहीं जाने वाला नहीं है, इसे तो तुमने निबुआ नोन चटा दिये हो ।
घी के दीए जलाना– दारोगाजी की कमाई पर मुंशीजी घी के दीए जलाते थे ।
सुबह का चिराग होना — उसके सभी बच्चे सुबह के चिराग हो गए ।
पाँचों उँगलियाँ घी में — जब से मोहन ने ठीकेदारी का काम लिया है उसकी पाँचों उँगलियाँ घी में हैं ।
कोढ़ में खाज होना— एक तो उसकी माँ मर गई, फिर कोढ़ में खाज की तरह पत्नी भी चल बसी ।
कलेजा काँपना – बेटा के आने में विलंब होने के कारण माँ का कलेजा काँपने लगा।
बाट जोहना– माँ अपने पुत्र के आने का बाट जोह रही थी ।
दाँत दिखाना—भिखारी भीख के लिए दाँत दिखा रहे थे ।
छाती पर पत्थर रखना- मुंशीजी छाती पर पत्थर रखकर बेटी को डोली पर चढ़ाया ।
टन बोल जाना— मोहन के सूदखोर पिताजी अभी-अभी टन बोल गए । -
कलेजा टूक-टूक होना – गणेश की व्यथा - कथा सुनकर कलेजा टूक-टूक हो गया ।
प्रश्न 2. 'बुढ़ापे की लाठी' और 'जितने मुँह उतनी बातें' कहावतों का वाक्य-प्रयोग द्वारा अर्थ स्पष्ट करें ।
उत्तर :
बुढ़ापे की लाठी– किसी भी व्यक्ति के पुत्र उसके बुढ़ापे की लाठी होते हैं ।
जितने मुँह उतनी बातें— आज हर विषय पर हर व्यक्ति के विचार में भिन्नता देखकर यह कहावत सटीक लगता है कि जितने मुँह उतनी बातें ।
प्रश्न 3. निम्नलिखित शब्दों के पर्याय लिखें :
घोड़ा, चिड़िया, घर, फूल, तीर
उत्तर : घोड़ा – अश्व
घर – निकेतन
चिड़िया – विहग
फूल - पुष्प
तीर – शर
प्रश्न 4. भाषा और इमारत शब्दों के वचन बदलें ।
उत्तर – भाषा–भाषाएँ, भाषाओं । इमारत - इमारतें, इमारतों ।
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